समानता
भारतीय लोककतंत्र में समानता
क्या आपको अपने जीवन की कोई ऐसी घटना याद है, जब आपकी गरिमा को चोट पहुँची हो ? आपको उस समय कैसा महसूस हुआ था ?
![]() ![]() ![]() |
ऊपर दिए गए फोटो मे आप देखे …
1975 में बनी दीवार फिल्म में जूते पॉलिश करने वाला एक लड़का फेंक कर दिए गए पैसे को उठाने से इनकार कर देता है | वो मानता है कि उसके काम की भी गरिमा है और उसे उसका भुगतान आदर कि साथ किया जाना चाहिए |
भारतीय लोककतंत्र में समानता
भारतीय संविधान सब व्यक्तियों को सामान मनाता है। इसका अर्थ है की देश में व्यक्ति चाहे वे पुरुष हो या स्त्री किसी भी जाति , धर्म , शैक्षिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंध रखते हो, वे सब समान माने जाएँगे। लेकिन किसके बाद भी हम यह नहीं कह सकते हैं कि असमानता खत्म हो गई है। यह खत्म नहीं हुई है, लेकिन फिर भी कम से कम भारतीय संविधान में सब व्यक्तियों की समानता के लिए के सिद्धांत को मान्य किया गया है। जहाँ पहले भेदभाव और दुर्व्यवहार से लोगों की रक्षा करने के लिए कोई कानून नहीं था, अब अनेक कानून लोगों के सम्मान तथा उनके साथ समानता के व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए मौजूद है।
समानता को स्थापित करने के लिए संविधान में जो प्रावधान हैं , उनमें से कुछ निम्नलिखित है — प्रथम , कानून की द्रष्टि में हर व्यक्ति समान है। इसका तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति को देश के राष्ट्रपति से लेकर कांता जैसी घरेलू काम की नौकरी करने वाली महिला तक सभी को एक ही जैसे कानून का पालन करना है | दूसरी, किसी भी व्यक्ति के साथ उसके धर्म जाति वंश जन्मस्थान और उसके स्त्री या पुरुष होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। तीसरा, हर व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर जा सकता है, जिनमे में खेल के मैदान, होटल दुकानें और बाजार आदि सम्मिलित है। सब लोग सार्वजनिक कुआं, सड़कों और नहाने के घाटों का उपयोग कर सकते हैं। चौथ, अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया गया।
शासन ने संविधान द्वारा मान्य किए गए समानता के अधिकार को दो तरह से लागू किया है – पहला, कानून के द्वारा और दूसरा, सरकार की योजनाओं व कार्यक्रमों द्वारा सुविधाहिन समाजों की मदद करके। भारत में ऐसे अनेक कानून है, जो व्यक्ति के समान व्यवहार प्राप्त करने के अधिकार की रक्षा करते हैं।
कानून के साथ-साथ सरकार ने उन समुदायों जिनके साथ सैकड़ो वर्षों तक असमानता का व्यवहार हुआ है, उनका जीवन सुधारने के लिए अनेक कार्यक्रम और योजना लागू की है। ये योजनाएँ यह सुनिश्चित करने के लिए चलाई गई है कि जिन लोगों को अतीत में अवसर नहीं मिले, अब उन्हें अधिक अवसर प्राप्त हो|
इस दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया एक कदम है – मध्याह्न भोजन की व्यवस्था | इस कार्यक्रम के अंतर्गत सभी सरकारी प्राथमिक स्कूलो के बच्चों को दोपहर का भजन स्कूल द्वारा दिया जाता है यह योजना भारत में सर्वप्रथम तमिलनाडु राज्य में प्रारंभ की गई और 2001 में उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को इसे अपने स्कूलों में क्षमता के अंदर आरंभ करने के निर्देश दिए | इस कार्यक्रम के काफी सकारात्मक प्रभाव हुआ। उदाहरण के लिए, दोपहर का भोजन मिलने के कारण गरीब बच्चों ने अधिक संख्या में स्कूल में प्रवेश लेने और नियमित रूप से स्कूल जाना शुरू कर दिया | शिक्षक बताते हैं कि पहले बच्चे खाना खाने घर जाते थे और फिर वापस स्कूल लौटते ही नहीं थे, परंतु अब, जब से स्कूल में मध्याह्न भोजन मिलने लगा है, उनकी उपस्थिति में सुधार आया है | वे माताएँ जिन्हें पहले अपना काम छोड़ कर दोपहर को बच्चों को खाना खिलाने घर आना पड़ता था, अब उन्हें ऐसा नहीं करना पड़ता है। क्या कार्यक्रम से जातिगत पूर्वाग्रहों को कम करने में भी सहायता मिली है, क्योंकि स्कूल में सभी जातियों के बच्चे साथ-साथ भोजन करते हैं और कुछ स्थान पर तो भोजन पकाने के लिए दलित महिलाओं को कम पर रखा गया है मध्यान भोजन कार्यक्रम नें निर्धन विद्यार्थियों की भूख मिटाने में भी सहायता की है जो प्रायः खाली पेट स्कूल आते हैं और इस कारण पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।